होशियारपुर/दलजीत अजनोहा
दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के स्थानीय आश्रम में साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम आयोजित किया। सत्संग में श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी तेजस्विनी भारती जी ने अपने विचारों को संगत को सुनाते हुए कहा कि इतिहास गवाह है कि जिसने अपना प्रेम ईश्वर से जोड़ लिया, उसका जीवन नवीनता के सांचे में ढल गया।
ईश्वर प्रेम के मार्ग पर चलते हुए उस व्यक्ति के कदम पूर्णतः रचनात्मक एवं लाभकारी सिद्ध होते हैं। उदाहरण के लिए, इतिहास में आता है तुलसीदास जो अपनी पत्नी मोह से ग्रस्त थे। इस कारण वे उपहास का पात्र बने, लेकिन जब संत नरहरिदास की कृपा से वे प्रभु की ओर मुड़े तभी उन्हें सच्चे प्रेम की अनुभूति हो सकी। भगवान के प्रेम के मार्ग पर चलकर वही तुलसीदास सभी की दृष्टि में आदरणीय बन गये। गोस्वामी तुलसीदास को रामचरितमानस के रचयिता के रूप में भी जाना जाता है। एक अन्य उदाहरण में साध्वी जी ने राजा अशोक का उल्लेख किया। उनका प्रेम राज्य, धन और संपत्ति से था। अपने अहंकार में उसने न जाने कितनी हत्याएं कीं, कई लाख
महिलाओं की जिंदगी बर्बाद कर दी, कितने बच्चों को अनाथ कर दिया और फिर एक विशाल साम्राज्य का स्वामी बन गया। लेकिन अंदर ही अंदर वह दुखी था, बेचैन था। तभी एक दिन उसके जीवन में एक बौद्ध भिक्षु आया। उन्होंने अपना प्रेम संसार से हटाकर रचयिता अर्थात ईश्वर की ओर मोड़ दिया।
भगवान से प्रेम करने के बाद वही हिंसक अशोक महान अशोक कहलाया। इसीलिए ऋषियों ने चेतावनी दी है, हे मनुष्य अपने चुनाव में गलती मत करना।
यदि प्रेम की रस्सी बांधनी है तो ईश्वर से बांधो l संसार का प्रेम स्वार्थी हो सकता है लेकिन ईश्वर का प्रेम निस्वार्थ है। ईश्वर से प्रेम करने के लिए ईश्वर दर्शन आवश्यक है, जो पूर्ण संत की शरण में जाकर ही संभव है। इसलिए मनुष्य को पूर्ण संत की शरण में जाकर शाश्वत प्रेम प्राप्त करना चाहिए।
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