माहिलपुर/दलजीत अजनोहा
वास्तु वह विज्ञान है जिसे हमे प्रकृति ने पंच तत्वों के रूप में दिया है जिस किसी ने अपने भवन को वास्तु के नियमानुसार बनाया है वहां कभी भी असंभव शब्द बोला ही नहीं जाता ऐसा मानना है अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वास्तुविद एवम लेखक डॉ भूपेंद्र वास्तुशास्त्री का। मानव को प्रकृति ने वास्तु के रूप में अनमोल तोहफ़ा दिया है जिसने भी इस तोहफे को दिल से स्वीकार कर अपने भवन में अपना लिया वहां पर, दुःख, दुर्भाग्य, दरिद्रता, नकारात्मकता, बीमारी आदि को कोई वजूद नहीं मिलता है न ही वहां पर इन सभी का तांडव होने का भय, भ्रम होता है। वहां अगर वास करेगा तो सकारत्मक ऊर्जा, आत्मबल, पद, प्रतिष्ठा, मान सम्मान यश कीर्ति ख्याति एवं लक्ष्मी जी का आशीर्वाद। वास्तु के बेसिक नियमों में भूमि का आकार जो कि चौकोर, वर्गाकार, आयताकार एवं संकोणीय होना चाहिए, इसमें अगर ईशान कोण बढ़ जाता है तो सोने में सुहागा। दूसरा भूमि की ढलान ईशान कोण की तरफ, पूर्व दिशा में या उतर दिशा में होनी चाहिए। तीसरा भवन का मुख्य द्वार किसी भी कोने में न हो कर भवन के मध्य भाग के दाएं बाएं होना चाहिए। चौथा आंतरिक इकाई का सही तरीके से निर्माण। पांचवा पंच तत्वों का सही व उचित स्थान पर रख कर भवन निर्माण करे। छठवां पंच तत्वों के आधार पर रंगों का चयन कर लिया जाए। सातवां बाहरी वास्तु को अपना ले तो आपके जीवन में असंभव शब्द ख़ुद आपके कानो में एक ही गूंज देगा हां मैं सम्भव हू।
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