शुल्क, व्यापार और दृढ़ता: भारत को संकट को अवसर में बदलना होगा – अमृत सागर मित्तल


होशियारपुर/दलजीत अजनोहा 
आईटीएल ग्रुप के वाइस चेयरमैन अमृत सागर मित्तल ने कहा है कि अमेरिकी सरकार द्वारा भारतीय वस्तुओं पर लगाए गए 50% के भारी शुल्क को केवल चुनौती के रूप में नहीं, बल्कि भारत के लिए अपने व्यापारिक लचीलापन को मज़बूत करने के अवसर के रूप में देखना चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार संजीव कुमार से बातचीत में मित्तल ने इस बात पर ज़ोर दिया कि भारत को अपने निर्यात बाज़ारों का विविधीकरण करना चाहिए, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के साथ व्यापारिक समझौतों को तेज़ी से अंतिम रूप देना चाहिए, और घरेलू प्रतिस्पर्धा को मज़बूत करने के लिए बुनियादी ढाँचे में सुधार, विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) सुधार तथा लक्षित निर्यात प्रोत्साहन लागू करने चाहिए।
उन्होंने कहा, “हर संकट अपने साथ एक अवसर लाता है—भारत को इस चुनौती को दीर्घकालिक व्यापारिक लचीलापन का उत्प्रेरक बनाना होगा।”
मित्तल की यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 27 अगस्त से भारतीय आयात पर औसतन 50% दंडात्मक शुल्क लागू करने की घोषणा की है। यह कदम लगभग 48 अरब डॉलर के भारतीय निर्यात को खतरे में डालता है, जबकि अमेरिका भारत के कुल निर्यात का 20% और GDP का लगभग 2% हिस्सा है। विशेषज्ञों का कहना है कि शुल्क वृद्धि से अमेरिकी बाज़ार में भारतीय वस्तुएं काफ़ी महंगी हो जाएंगी, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धा क्षमता घटेगी।
हालाँकि, दवा उद्योग (10.5 अरब डॉलर), इलेक्ट्रॉनिक्स (14.6 अरब डॉलर), इंजीनियरिंग उत्पाद और ऑटो कंपोनेंट्स (9.3 अरब डॉलर) तथा पेट्रोलियम उत्पाद (4.09 अरब डॉलर) को इस शुल्क से छूट मिली है, लेकिन कृषि, वस्त्र, रत्न और आभूषण, मशीनरी, चमड़ा और रसायन जैसे क्षेत्रों पर भारी शुल्क—कुछ मामलों में 64% तक—लगाया गया है, जो गंभीर निर्यात हानि का कारण बन सकता है।
व्यापार विश्लेषकों का कहना है कि वियतनाम, बांग्लादेश और मेक्सिको जैसे प्रतिस्पर्धी देश—जो या तो कम अमेरिकी शुल्क या मुक्त व्यापार समझौतों का लाभ उठा रहे हैं—भारत से बाज़ार हिस्सेदारी छीन सकते हैं। भारत-अमेरिका के बीच व्यापक व्यापार समझौते की अनुपस्थिति नई दिल्ली को ऐसे एकतरफ़ा कदमों के प्रति असुरक्षित बनाती है।

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